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सवैया
प्रेमासक्ति- सब धीरज क्यो न धरौ सजनी पिय तो तुम सो अनुरागेइगौ।
सब धीरज क्यो न धरौ सजनी पिय तो तुम सो अनुरागेइगौ।जब जोग सँजोग को आन बनै तब जोग बिजोग को मानेइगौ।।
रसखान
साखी
प्रेम का अंग - प्रेम बिना धीरज नहीं बिरह बिना बैराग
प्रेम बिना धीरज नहीं बिरह बिना बैरागसतगुरु बिन जावै नहीं मन मनसा का दाग़
कबीर
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सूफ़ी लेख
पदमावत में अर्थ की दृष्टि से विचारणीय कुछ स्थल - डॉ. माता प्रसाद गुप्त
किलकिल उठा देखि डरु खाए। गा धीरज वह देखि हिलोरा।
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी लेख
उ’र्फ़ी हिन्दी ज़बान में - मक़्बूल हुसैन अहमदपुरी
उ’र्फ़ी धीरज राखिए जो भी नाम धराएपीत लगे जिस शूल को तुरत फूल हो जाए
ज़माना
खंडकाव्य
इंद्रावति -जीव कहानी खंड
बुद्ध पठायेउ लाजकों, मनहि बुझायेउ आय।दिन दुइ मन धीरज धरा, पुनि अधीर भा राय।।10।।
नूर मोहम्मद
कुंडलिया
छाती बजरंग भई काहे तरकि न जात
बहत कटारी गात रात सब पंखी बोलैकहि धीरज क्यूँ धरै नाँव करिया बिन डोलै
वाजिद जी दादूपंथी
पद
करूणा के सागर कौ मन तुम भज-भज मंगल गित गावौ
मान तनोका मनसे जीतो भवगति सबही हरवावौधीरज राखौ निढल पनोसे घट घट येकी जगवावौ