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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
ना'त-ओ-मनक़बत
नोक-ए-नेज़ा पर नमाज़-ए-'इश्क़ पढ़ने के लिएनश्र करता है अज़ाँ 'असअद' मनार-ए-फ़ातिमा
अस'अद रब्बानी
ना'त-ओ-मनक़बत
'आशिक़ों सज्दा नमाज़-ए-'इश्क़ का होगा वहाँक़िबला-ओ-का’बा इमाम-उल-औलिया कलियर में है
अमीर बख़्श साबरी
ना'त-ओ-मनक़बत
जो अदा करने नमाज़-ए-'इश्क़ सफ़ में हैं खड़ेउन सभी के मुक़्तदा है हज़रत-ए-मुस्लिम पिया
सय्यद हसन अहमद
ना'त-ओ-मनक़बत
जफ़ा की तेग़ के साए में की अदा तूनेनमाज़-ए-'इश्क़-ओ-मोहब्बत हुसैन ज़िंदाबाद
तुफ़ैल अहमद मिसबाही
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ना'त-ओ-मनक़बत
उस सरवर-ए-दीं पर जान फ़िदा की जिस ने नमाज़-ए-इश्क़ अदातलवारों की झंकारों में और तीरों की बौछारों में
उमर वारसी
ग़ज़ल
कैसी ये बद-हवासियाँ कैसा ये साज़-ओ-बाज़-ए-’इश्क़सज्दा-ए-हुस्न कर लिया भूल गया नमाज़-ए-'इश्क़
फ़ज़्ल नक़वी
ग़ज़ल
हसरत-ओ-यास-ओ-आरज़ू शौक़ का इक़्तिदा करेंकुश्तः-ए-ग़म की लाश पर धूम से हो नमाज़-ए-इश्क़
बेदम शाह वारसी
कलाम
नमाज़-ए-'इश्क़ का सज्दा अदा करना क़यामत हैये डर है ग़ैर के आगे कहीं सज्दा न हो जाए
अमीर बख़्श साबरी
ग़ज़ल
झुकती है नज़र सज्दे के लिए होती है नमाज़-ए-'इश्क़ अदामे'राज-ए-'इबादत क्या कहिए वो सामने आए बैठे हैं
फ़ना बुलंदशहरी
ग़ज़ल
वो क्या जाने नमाज़-ए-'इश्क़ क्या है किस तरह होगीतेरे नक़्श-ए-क़दम पे जिस को झुक जाना नहीं आता
अमीर बख़्श साबरी
ग़ज़ल
कभी जुस्तुजू कभी ग़ौर है ये नमाज़-ए-इश्क़ का तौर हैन रुकू है न सुजूद है न क़याम है न सलाम है
अर्श गयावी
ग़ज़ल
शहीद-ए-इ’श्क़-ए-मौला-ए-क़तील-ए-हुब्ब-ए-रहमानेजनाब-ए-ख़्वाजः क़ुतुबुद्दीं इमाम-ए-दीन-ओ-ईमाने
वाहिद बख़्श स्याल
सूफ़ी कहावत
रू-ए ज़ेबा मरहम-ए-दिलहा-ए-ख़स्ता अस्त-ओ-कलीद-ए-दरहा-ए-बस्ता
एक ख़ूबसूरत चेहरा दुखी दिलों के लिए मरहम की तरह होता है, और बंद दरवाजों के लिए कुंजी
वाचिक परंपरा
ना'त-ओ-मनक़बत
गुल-ए-बुस्तान-ए-मा'शूक़ी मह-ए-ताबान-ए-महबूबीनिज़ामुद्दीन सुल्तान-उल-मशाइख़ जान-ए-महबूबी