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बैत
किसी की नर्गिस-ए-मख़मूर कुछ कह दे इशारों में
किसी की नर्गिस-ए-मख़मूर कुछ कह दे इशारों मेंमज़ा है रात-दिन चलती रहे परहेज़गारों में
दाग़ देहलवी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
चश्म-ए-नर्गिस निगरानस्त ब-गुलज़ार बियाफ़र्श-ए-राह-ए-तू गुल अन्द ऐ गुल-ए-बे-ए-ख़ार बिया
शाह अकबर दानापूरी
शे'र
चश्म नर्गिस बन गई है इश्तियाक़-ए-दीद मेंकौन कहता है कि गुलशन में तिरा चर्चा नहीं
मिरर्ज़ा फ़िदा अली शाह मनन
कलाम
'अजब अंदाज़ तुझ को नर्गिस-ए-मस्ताना आता हैकि हर होशियार बनने को यहाँ दीवाना आता है
बाक़ीर शाहजहांपुरी
ग़ज़ल
शहीद-ए-इ’श्क़-ए-मौला-ए-क़तील-ए-हुब्ब-ए-रहमानेजनाब-ए-ख़्वाजः क़ुतुबुद्दीं इमाम-ए-दीन-ओ-ईमाने
वाहिद बख़्श स्याल
सूफ़ी कहावत
रू-ए ज़ेबा मरहम-ए-दिलहा-ए-ख़स्ता अस्त-ओ-कलीद-ए-दरहा-ए-बस्ता
एक ख़ूबसूरत चेहरा दुखी दिलों के लिए मरहम की तरह होता है, और बंद दरवाजों के लिए कुंजी
वाचिक परंपरा
ना'त-ओ-मनक़बत
गुल-ए-बुस्तान-ए-मा'शूक़ी मह-ए-ताबान-ए-महबूबीनिज़ामुद्दीन सुल्तान-उल-मशाइख़ जान-ए-महबूबी