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सतसई
।। बिहारी सतसई ।।
नर की अरु नल-नीर की गति एकै करि जोइ।जेतौ नीचौ ह्वै चलै तेतौ ऊंचै होइ।।321।।
बिहारी
महाकाव्य
।। रसप्रबोध ।।
छुटत न यै नल नीर जल जल सजि छिति तें आइ।निरख निदाध अनीति को चल्यौ भानु पै जाइ।।680।।
रसलीन
कवित्त
अनन्य भाव - कहा 'रसखानि' सुखसम्पति सुमार कहा
कहा साधे पचानल कहा सोए बीच नलकहा जीति लाए राज सिंधु आर-पार को
रसखान
सूफ़ी लेख
प्रेमाख्यानकार कवि जान और उनका कृतित्व- डाक्टर हरीश
सूफी प्रेमाख्यानों के साथ असूफी प्रेमाख्यानों का भी योगदान कम महत्व का नहीं। इन असूफी प्रेमाख्यानों