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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
ना'त-ओ-मनक़बत
ख़ुदा के नाम से रौशन है नाम-ए-’अब्दुल्लाहकलाम-ए-मुस्तफ़वी है कलाम-ए-’अब्दुल्लाह
मयकश अकबराबादी
ना'त-ओ-मनक़बत
रौनक़-ए-शान-ए-बे-निशाँ नाम-ओ-निशाँ में भी आजे़ब-ए-फ़िज़ा-ए-ला-मकाँ अब तो मकाँ में भी आ
मौलाना अ’ब्दुल क़दीर हसरत
ना'त-ओ-मनक़बत
इश्तियाक़ आलम शहबाज़ी
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ना'त-ओ-मनक़बत
जो नाम-ए-ग़ौस-ए-आ’ज़म दिल से भी दोहराने लगते हैंमक़ाम-ए-सिर्र-ए-इल-लल्लाह को वो पाने लगते हैं
रियाज़ अहमद
ना'त-ओ-मनक़बत
ऐ बे-नियाज़-ए-मालिक मालिक है नाम तेरामुझ को है नाज़ तुझ पर मैं हूँ ग़ुलाम तेरा
शाह अकबर दानापूरी
ना'त-ओ-मनक़बत
जो है अंबिया की ज़बान पर वही नाम नाम-ए-रसूल हैयहाँ जिब्रईल भी दंग है कि ये क्या मक़ाम-ए-रसूल है
हबीबुल्लाह साग़र वारसी
ना'त-ओ-मनक़बत
'अली के नाम की 'अज़्मत सिफ़ात-ए-इस्म-ए-आ’ज़म है'अली ही 'इल्म की तौक़ीर का हुस्न-ए-मुजस्सम है
ख़्वाजा शायान हसन
ना'त-ओ-मनक़बत
'अली का नाम हर अहल-ए-वफ़ा की शान-ओ-शौकत है'अली मुर्तज़ा फ़ख़्र-ए-उमम राह-ए-हिदायत है
ख़्वाजा शायान हसन
ना'त-ओ-मनक़बत
क़ैद में भी शौकत-ए-नाम-ओ-नसब ज़ैनब में हैजो है अहल-ए-बैत की पहचान सब ज़ैनब में है