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दकनी सूफ़ी काव्य
तूतीनामा- चुन उस गोहराँ के समन्द का गम्भीर
सुन्या ज्यों वली नेमत इसते यो बात
अजायब लग्या उसके तर्ई धातधात
मुल्ला ग़व्वासी
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सूफ़ी लेख
ज़िक्र-ए-ख़ैर : ख़्वाजा अमजद हुसैन नक़्शबंदी
हल्क़ा ए मुरीदान काफ़ी वसीअ था। मौजूदा बंगलादेश का मुकम्मल इलाक़ा आपके फैज़ान से बहरावर था।क्या
रय्यान अबुलउलाई
सूफ़ी लेख
हज़रत मौलाना शाह हिलाल अहमद क़ादरी मुजीबी
आप हल्क़ा ए इल्म ओ अदब और अर्बाब ए फ़िक्र ओ दानिश के माबैन एक नुमायाँ
रय्यान अबुलउलाई
सूफ़ी लेख
दूल्हा और दुल्हन का आरिफ़ाना तसव्वुर
आम तौर से लोगों को औरत का हुस्न-व-जमाल भी पसंद है और मर्द का जाह-व-जलाल भी।
शमीम तारिक़
व्यंग्य
मुल्ला नसरुद्दीन- तीसरी दास्तान
उन भाइयों ने इतनी ज़िद पकड़ी कि नियाज़ से इनकार नहीं करते बना। नियाज़ उनके ख़ानदान