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शे'र
जल्वे से तिरे है कब ख़ाली फल फूल फली पत्ता डालीहै रंग तिरा गुलशन गुलशन सुब्हान-अल्लाह सुब्हान-अल्लाह
अकबर वारसी मेरठी
सूफ़ी लेख
उर्स के दौरान होने वाले तरही मुशायरे की एक झलक
मुद्दतों खाईं हवाएं हमने बाग़-ए-यार कीपत्ता पत्ता डाली डाली सैर की गुलज़ार की
सुमन मिश्रा
सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
-कुम्हार(125) चार अंगुल का पेड़ सवा मन का पत्ता।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
-कुम्हार (125) चार अंगुल का पेड़ सवा मन का पत्ता।
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मुनाजात
ऐ मिरे दाता ऐ मिरे मालिक ऐ मिरे मौला ऐ मिरे वाली
तेरे शवाहिद बहर-ओ-बर गर्दूं ज़मीं अय्याम-ओ-लयालीज़र्रा ज़र्रा क़तरा क़तरा पत्ता पत्ता डाली डाली
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
कलाम
फ़ज़ा-ए-रंग-ओ-बू-ए-गुलिस्ताँ का राज़-दाँ मैं हूँचमन का पत्ता पत्ता कह रहा है बाग़बाँ मैं हूँ
बह्ज़ाद लखनवी
नज़्म
गुलशन-ए-हिंदुस्तान
इस गुलशन में जो भी रहेगा हर ग़म से आज़ाद रहेगापत्ता पत्ता बूटा बूटा शाद भी है और शाद रहेगा
अज़ीज़ वारसी देहलवी
कलाम
अ'जब कुछ बे-निशाँ है वो कि है हर इक निशाँ उस कापता देता है पत्ता पत्ता उस की बे-निशानी का
ग़ौसी शाह
ना'त-ओ-मनक़बत
अब्दुर्रब सूफ़ी
ग़ज़ल
पीर नसीरुद्दीन नसीर
ग़ज़ल
यूँ लगा जैसे हो ये भी किसी मुफ़्लिस का वुजूदख़ुश्क पत्ता जो कभी उड़ता हुआ देखा है
इलयास अ’लवी शादाब
ग़ज़ल
प्यार से क़ाइम है तख़्लीक़-ए-दो-'आलम का भरमइस शजर की अन-गिनत शाख़ें हैं पत्ता एक है
अहमद नदीम क़ासमी
शे'र
मोहब्बत में जुदाई का मज़ा 'मुज़्तर' न जाने दूँवो बुलबुल हूँ कि गुल पाऊँ तो पत्ता दरमियाँ रक्खूँ
मुज़्तर ख़ैराबादी
ग़ज़ल
मोहब्बत में जुदाई का मज़ा 'मुज़्तर' न जाने दूँवो बुलबुल हूँ कि गुल पाऊँ तो पत्ता दरमियाँ रक्खूँ