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सलोक
फ़रीदा पाउ पसार के अट्ठे पहर ही सउं
फ़रीदा पाउ पसार के अट्ठे पहर ही सउंलेखा कोई न पुछई जे विचहुं जावी हउं
बाबा फ़रीद
सलोक
फ़रीदा राती चार पहर तू सुता कूँ जाग
फ़रीदा राती चार पहर तू सुता कूँ जागघना सोवसी गोर मह लहसिया इहु विरागु
बाबा फ़रीद
ग़ज़ल
जगेशवर प्रसाद ख़लिश
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ना'त-ओ-मनक़बत
ग़रीबों का सहारा या मोहम्मद मुस्तफ़ा तुम होख़ुदा के दिल-रुबा हो बे-कसों का आसरा तुम हो
अज्ञात
अभंग
बहते को बह जाने दो मत पकड़ो थोर।
बहते को बह जाने दो मत पकड़ो थोर।समझाये समझे नहीं दे धक्के दो औऱ।।
लालदास
होरी
नय्या लगा दो पार ख़्वाजा मोरी नय्या लगा दो पार
नय्या लगा दो पार ख़्वाजा मोरी नय्या लगा दो पारबिना खेवय्या बही-बही हूँ आन पड़ी मंझधार
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
दोहरा
पहेली बूझो पंडिता, दो दिन केती मास।
पहेली बूझो पंडिता, दो दिन केती मास।दिया बूझरी एक तल, जानो बरस पचास।।
शेख़ अहमद खट्टू
सूफ़ी कहानी
एक बादशाह का दो नव ख़रीद ग़ुलामों का इम्तिहान लेना- दफ़्तर-ए-दोम
एक बादशाह ने दो ग़ुलाम सस्ते ख़रीदे। एक से बातचीत कर के उस को अ’क़्लमंद और
रूमी
दोहरा
माल मुल्क “शाहे-आलम” को दो, और ख़ज़ाने तुम्ही भरना
माल मुल्क “शाहे-आलम” को दो, और ख़ज़ाने तुम्ही भरनासैर करें अमराई तले तख छूटत चादर और झरना
शाह आलम सानी
सूफ़ी कहानी
डाकूओं का दो शख्सों में से एक को मार डालने का क़स्द करना- दफ़्तर-ए-दोउम
किसी जगह डाकू बड़े खूँरेज़ थे। एक गांव पर डाका-ज़नी के लिए आ पड़े। उस गांव
रूमी
दोहा
सतगुरू - सतगुरू शब्दी तेग़ है लागत दो करि देही
सतगुरू शब्दी तेग़ है लागत दो करि देहीपीठ फेरि कायर भजै सूरा सन्मुख लेहि
चरनदास जी
ना'त-ओ-मनक़बत
करम कर दो तुम्हारा तो सख़ी दरबार है बाबातुम्हारे दर पे हाज़िर आज हर लाचार है बाबा