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सूफ़ी कहानी
ऊंट, बैल और भेड़ का रास्ते में घास की एक पोली पाना - दफ़्तर-ए-शशुम
ऊंट, बैल और भेड़ ने एक घास का गठ्ठा रास्ते में पड़ा पाया। भेड़ ने कहा
रूमी
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ना'त-ओ-मनक़बत
पाना तूं अनूएँ रूला, कह मौला अली मौलाभरदा ए कासा जीहड़ा हर इक फ़क़ीर दा
अ'ब्दुल सत्तार नियाज़ी
शबद
सत्संग रूपी गंगा नित्य नहाना चाहिए
ये काया रूपी काशी बड़े भाग से मिलीइस में जीवित मर के मुक्ति पाना चाहिए
स्वामी आत्मप्रकाश
कलाम
जिन को पाना था उन्हें पा गईं दोनों आँखेंदीद का धोका मगर खा गईं दोनों आँखें
नवाब मोइनुद्दौला बहादुर
ना'त-ओ-मनक़बत
तुझ को पाना है अगर सदक़ा 'निज़ामी' हुस्न काफिर मदीना चल वो है रश्क-ए-शबिस्तान-ए-जमाल
अमीर हमज़ा निज़ामी
ना'त-ओ-मनक़बत
बहुत दुश्वार है तेरी हक़ीक़त को समझ पानाकि तेरी ज़ात है अ'क़्ल-ओ-ख़िरद से मावरा या रब
जलाल अकबर
कलाम
मय-कदा हो दैर हो मस्जिद हो या गुलज़ार-ओ-दश्तहर जगह उस शोख़ हरजाई को पाना चाहिए