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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
सूफ़ी कहानी
हज़रत-ए-उ’मर के पास सफ़ीर-ए-क़ैसर का आना - दफ़्तर-ए-अव्वल
क़ैसर का एक सफ़ीर दूर-दराज़ बयाबानों को तय कर के हज़रत-ए-उ’मर से मिलने को मदीने पहुंचा।
रूमी
ना'त-ओ-मनक़बत
बा-अदब आओ यहाँ पर है दयार-ए-फ़ातिमाख़ुल्द की भी ख़ुल्द है यारो मज़ार-ए-फ़ातिमा
रफ़ीक़ अशरफ़ी
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शे'र
गुज़र जा मंज़िल-ए-एहसास की हद से भी ऐ 'अफ़्क़र'कमाल-ए-बे-खु़दी है बे-नियाज़-ए-होश हो जाना
अफ़क़र मोहानी
शे'र
गुज़र जा मंज़िल-ए-एहसास की हद से भी ऐ 'अफ़्क़र'कमाल-ए-बे-खु़दी है बे-नियाज़-ए-होश हो जाना
अफ़क़र मोहानी
ना'त-ओ-मनक़बत
अदब से अ'र्ज़ है बा-चश्म-ए-तर ग़रीब-नवाज़इधर भी एक उचटती नज़र ग़रीब-नवाज़
पीर नसीरुद्दीन नसीर
दोहरा
तुका बड़ो मैं ना मनूँ जिस पास बहु दाम
'तुका' बड़ो मैं ना मनूँ जिस पास बहु दामबलिहारी उस मुख की जिस्ते निकसे राम
तुकाराम
साखी
सत्संग- बाजीद दास के पास कौं, फल कहा बरनैं कोइ।
बाजीद दास के पास कौं, फल कहा बरनैं कोइ।तांबै तै कंचन भयौ, पारस परसैं लोइ।।
वाजिद जी दादूपंथी
कलाम
ख़ुदी ख़ुद-बीनियों की हद में दाख़िल होती जाती हैख़ुदा की मा'रिफ़त कुछ और मुश्किल होती जाती है