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शबद
रहंसी क्यूँ नहिं नाचूँ सखिए जो पिए रंग चढ़ाया।
रहंसी क्यूँ नहिं नाचूँ सखिए जो पिए रंग चढ़ाया।तन मन जय सभ इक रंग दीखा तब मैं आप गंवाया
अब्दुल क़ुद्दूस गंगोही
ग़ज़ल
जो मय दिल से पिए कोई तो फिर रख़्ने नहीं रहतेज़रा ये साफ़ कर ली जाये फिर तिनके नहीं रहते
मुज़्तर ख़ैराबादी
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सूफ़ी लेख
ज़िक्र-ए-ख़ैर : हज़रत शाह मोहसिन दानापुरी
का’बा में भी शराब पिए जा रहा हूँ मैं(रूहानी गुलदस्ता, सफ़हा 50)
रय्यान अबुलउलाई
सतसई
।। बिहारी सतसई ।।
सखि सोहति गोपाल कैं उर गुंजनु की माल।बाहिर लसति मनौ पिए दावानल की ज्वाल।।312।।
बिहारी
सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
(179) अंगाँ मेरे लिपटा रहे, रंग रूप का सब रस पिए।।मैं भर जनम न वाको छोड़ा। ऐ सखी साजन ना सखी चूड़ा।।