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Sufinama

तख़्ता-ए-मश्क़-ए-जफ़ा ठहरा तो ये दिल ठहरा

नज़र भागलपूरी

तख़्ता-ए-मश्क़-ए-जफ़ा ठहरा तो ये दिल ठहरा

नज़र भागलपूरी

MORE BYनज़र भागलपूरी

    तख़्ता-ए-मश्क़-ए-जफ़ा ठहरा तो ये दिल ठहरा

    चूर जो शीशा हुआ उन के मुक़ाबिल ठहरा

    जफ़ा से तुम बाज़ आओ तो बदलें हम वफ़ा से क्यूँ

    तुम्हें वो काम आएगा हमें ये काम आएगा

    शरारत नाज़ ग़म्ज़ा सादगी शोख़ी अदा ख़ूबी

    मुझे इक शान-ए-जल्वत तूने ख़ल्वत में दिखाई है

    ख़िर्मन-ए-हस्ती जलाया डाल-दी जिस पर नज़र

    नाज़-ओ-ग़मज़े में भी उसके बर्क़ की तासीर है

    कहना ये नामा-बर कि थी हसरत-ए-दीद मर के भी

    आँखें खुली ही रह गईं आप के इंतिज़ार में

    सख़्त जाँ में और मिरे क़ातिल का नाज़ुक दस्त-ए-नाज़

    हाय उस पर धार मुड़ कर रह गई शमशीर की

    दाद देता हूँ दिल-ए-ज़ख़्मी में तीर-अंदाज़ को

    तीर तो निकला मगर पैकाँ जुदा होता नहीं

    दिन-रात ज़ुल्फ़-ओ-रुख़ का तसव्वुर है और हम

    बस मुब्तला हैं गर्दिश-ए-लैल-ओ-नहार में

    गुज़ारी इक उ'म्र सर पटक कर तुम्हारे दर पर ब-आह-ओ-ज़ारी

    मगर तुम्हारे संग-ए-दर को ख़याल आया मिरी जबीं का

    शराब-ए-मोहब्बत की लज़्ज़त पूछो

    पिए जा रहा हूँ मगर तिश्नगी है

    स्रोत :
    • पुस्तक : तज़्रकिरा सुस्लिम शो’रा-ए-बिहार हस्सा पंजुम (पृष्ठ 80)
    • रचनाकार : हकीम सय्यद अहमदुल्लाह नदवी

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