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सूफ़ी कहानी
एक शख़्स का अपने हाल-ए-ज़ाहिर के ख़िलाफ़ हवा बांधना
एक शख़्स इ’राक़ से बिलकुल बे सर-ओ-सामान हो कर आया। दोस्तों ने उस से दूरी-ओ-जुदाई के
रूमी
ग़ज़ल
क्यूँ ख़ुशी तुम को हुई हाल-ए-परेशाँ देख करहँस रहे हो क्यूँ मिरे ज़ख़्मों को ख़ंदाँ देख कर
रौशन बदायूँनी
शे'र
किस को सुनाऊँ हाल-ए-ग़म कोई ग़म-आश्ना नहींऐसा मिला है दर्द-ए-दिल जिस की कोई दवा नहीं
फ़ना बुलंदशहरी
कलाम
किस को सुनाऊँ हाल-ए-ग़म कोई ग़म-आश्ना नहींऐसा मिला है दर्द-ए-दिल जिस की कोई दवा नहीं
फ़ना बुलंदशहरी
शे'र
हाल-ए-दिल है कोई ख़्वाब-आवर फ़साना तो नहींनींद अभी से तुम को ऐ यारान-ए-महफ़िल आ गई