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ग़ज़ल
बेदम शाह वारसी
सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
(234) सितार क्यों न बजा,औरत क्यों न नहाई?
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
ज़िक्र-ए-ख़ैर : ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
जो मुझे कहते हैं सो यार वो बजा कहते हैंशे’र”
रय्यान अबुलउलाई
सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
नौकर क्यों न रखा? उत्तर- ज़ामिन न था।(234) सितार क्यों न बजा,
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
ख़्वाजा शम्सुद्दीन मुहम्मद ‘हाफ़िज़’ शीराज़ी
बजा-ए-लौह-ए-सीमीं दर कनारशफ़लक़ बर सर निहादश लौह-ए-संगी॥
सुमन मिश्रा
दकनी सूफ़ी काव्य
किस्सासुल अम्बिया
अथे एक जाह तब नज़दीक उन सूँकिये यूसुफ़ कूँ सब पे इस बजा सू
मुहम्मद ग़ौसी
सूफ़ी लेख
हिन्दुस्तानी क़व्वाली के विभिन्न प्रकार
उर्स-ए-मख़दूम में लाया जिन्हें दाना पानीतू गले मिल के बजा मुजरई बहर-ए-करम