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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
ना'त-ओ-मनक़बत
कौन हो मसनद-नशीं ख़ाक-ए-मदीना छोड़ करख़ुल्द देखे कौन कू-ए-शाह-ए-बतहा छोड़ कर
पीर नसीरुद्दीन नसीर
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फ़ारसी सूफ़ी काव्य
दिला नज़्द-ए-कसे ब-नशीं कि ऊ अज़ दिल ख़बर दारदबसायःइ-आँ दरख़़्ते रौ कि ऊ गुल-हा-ए-तर दारद
रूमी
सूफ़ी कहानी
एक बादशाह का दो नव ख़रीद ग़ुलामों का इम्तिहान लेना- दफ़्तर-ए-दोम
एक बादशाह ने दो ग़ुलाम सस्ते ख़रीदे। एक से बातचीत कर के उस को अ’क़्लमंद और
रूमी
शे'र
न छेड़ ऐ हम-नशीं कैफ़ियत-ए-सहबा के अफ़्सानेशराब-ए-बे-ख़ुदी के मुझ को साग़र याद आते हैं
हसरत मोहानी
सूफ़ी कहानी
बादशाह का एक दरख़्त की तलाश करना कि जो उस का मेवा खाए वो ना मरे- दफ़्तर-ए-दोउम
एक अ’क़्ल-मंद ने क़िस्से के तौर पर बयान किया कि हिन्दोस्तान में एक दरख़्त है जो
रूमी
ना'त-ओ-मनक़बत
मोहम्मद मुस्तफ़ा का जा-नशीं सिद्दीक़-ए-अकबर हैब-जुज़ पैग़म्बरों के सब से आ'ला सब से बरतर है
मौलाना अ’ब्दुल क़दीर हसरत
ग़ज़ल
रहे हम राज़-दार-ए-उल्फ़त-ए-पर्द:-नशीं बरसोंछुपाया जेब के पर्दे में चाक-ए-आस्तीं बरसों
मुज़्तर ख़ैराबादी
ना'त-ओ-मनक़बत
फ़र्श पे मसनद नशीं हो या मुहम्मद मुस्तफ़ातुम सर-ए-अर्शे बरीं हो या मुहम्मद मुस्तफ़ा