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ना'त-ओ-मनक़बत
वो बाब-ए-इल्म व ज़ोर-ए-दस्त-ओ-बाज़ू-ए-मोहम्मद थेवो शाह-ए-ज़ुल्फ़िक़ार-ओ-पेशवा-ए-इंस-ओ-जां ठहरे
हैरत शाह वारसी
कलाम
ढूँढ उस जगह किशवर-ए-’अली बाब-ए-’इल्म है’उक़्दा वहीं से होवे है हल मुश्किलात का
मिर्ज़ा मोहम्मद अली फ़िदवी
ना'त-ओ-मनक़बत
तिरा दर है फ़क़ीरों के लिए बाब-ए-करम वारिस'अता कर वारसी सदक़ा मिटा दे रंज-ओ-ग़म वारिस
फ़ना बुलंदशहरी
ना'त-ओ-मनक़बत
हक़ीक़त मेरे ख़्वाजा की कोई बे-’इल्म क्या जानेख़ुदा ही ख़ूब जाने है ओ या बस मुस्तफ़ा जाने
ज़ैनुल आबिदीन चिश्ती
ग़ज़ल
ख़ुद अपने ’इल्म की आँखों में बे-पर्दा नहीं आताबहुत देखा है अपने आप को लेकिन नहीं देखा