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पद
चैत- चैत निरजीवै न कोई, जीव जम को ग्रास है ।
जठर में जिन प्राण राखे, सो बिसारे बावरे ।देख मृग-तृष्णा जो भूले, बृथा धोखा खाव रे ।।
तुलसीदास (ब्रजवासी)
सूफ़ी लेख
कबीर के कुछ अप्रकाशित पद ओमप्रकाश सक्सेना
को लूटे धन जोबन बावरे, को लूटे सुन्दर नारी।। राम परम पद कोउ न लूटे, कबीर भीखारी जप रे राम परम पद।
हिंदुस्तानी पत्रिका
रेख़्ता
अरे मन मस्त बेहोस बस हो रहा
दास 'तुलसी' नर चेत चल बावरेबूझ बिन यार नहिं पार पावै
तुलसी साहिब हाथरस वाले
पद
ऐ आज आयो आयो सुरजवंश छत्रपत राजाराम लंका नगर जीत
'बैजू' बावरे के प्रभु कूँ नारद तृंवर गुणी गंधर्व हाहा हूहू गायो
बैजू बावरा
पद
कहा तुम गावत हो गायन नाद विद्या अति अपरंपार
कहत 'बैजू' बावरे ताकी ढुरन मुरन रोही अवरोही अलाप अस्थाई संचाईप्रथम वोंकार
बैजू बावरा
दकनी सूफ़ी काव्य
गंजीन-ए-शोहदा
दुनिया-दारी बावरे चलत न ढूढे सो नलिखन-हारा लिख गया मेटनहारा कौन
अमानुल्लाह
दोहा
पेम कहानी कहत हूँ सुनो सखी तुम आए
ऐ मन खले बावरे बूँ पूछत हूँ तूहकिन बिरहन एतो कियोखि किन खोवयो मोह
दोस्त मोहम्मद अबुलउलाई
पद
जागत भैरो जोती स्वरूप किरन तें प्रगट्यो तिमिर घटयो शशि भयो मंद
उषा चक्षु जोति प्रकास प्रतच्छु देव जगंद'बैजू' बावरे रावरे कहावत काटो जनम मरन के फंद
बैजू बावरा
पद
लोगों की भूल - सखी री मेरे बिच अचरज होय
जनम मरन चौरासी फेरा भुगत रहे सब कोयकरम भरम सँग हुए बावरे जनम अकारथ खोय
शालीग्राम
पद
ऐ आयो आयो मेरे गृह नंद को नंदन मन इंछा फल पायो
अनेक पतित उधारे गिरिधर भक्तन के मन भायो'बैजू' बावरे रावरे कहावत चरन कमल चित लायो
बैजू बावरा
कृष्ण भक्ति संत काव्य
अपना रूप दिखाय बावरे गल विच डारी फाँसीसतगुरु रूप सहज चल आये शब्दों किया विलासी