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ना'त-ओ-मनक़बत
हज़ारों में बेहतर थे जो हक़ पर बा-वफ़ा पहुँचेमदीने से निकल कर इब्न-ए-मौला कर्बला पहुँचे
ख़्वाजा शायान हसन
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सूफ़ी कहावत
हर के रा मी ख़्वाही बा श्नासी या बा उ मु'आमला कुन या सफ़र कुन
किसी व्यक्ति की सच्ची प्रकृति को जानने के लिए, उसके साथ व्यवहार करें या यात्रा करें।
वाचिक परंपरा
ना'त-ओ-मनक़बत
मरते-मरते भी न छोड़ूँ दामन-ए-दौलत से हाथवो ग़ुलाम-ए-बा-वफ़ा हूँ ख़्वाजगान-ए-चिश्त का
हाफ़िज़ हबीब अ'ली शाह
फ़ारसी कलाम
बा-रुख़-ए-रौशन-ओ-बा-ज़ुल्फ़-ए-दराज़ आमद:ईदिल-ए-मन ब-ऊ फ़िदायत ब-चे नाज़ आमद:ई
कैफ़ी चिरैय्याकोटी
ग़ज़ल
ख़ुदा जाने तरीक़ः हुस्न-ओ-उलफ़त का जुदा क्यूँ हैमैं इतना बा-वफ़ा क्यूँ हूँ वो इतना बे-वफ़ा क्यूँ है