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ना'त-ओ-मनक़बत
बिछी हैं औलिया-अल्लाह की पेशानियाँ जिस मेंमुझे वारफ़्तगी-ए-शौक़ लाई किस की मज्लिस में
ज़हीन शाह ताजी
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ग़ज़ल
बहारें फ़र्श हो हो कर बिछी जाती हैं गुलशन में’उरूस-ए-सुब्ह-ए-गुल हो कर जवानी मुस्कुराई है
ज़हीन शाह ताजी
सूफ़ी लेख
हज़रत ख़्वाजा नूर मोहम्मद महारवी - प्रोफ़ेसर इफ़्तिख़ार अहमद चिश्ती सुलैमानी
हज़रत मौलाना साहिब रहमतुल्लाहि अ’लैह की ख़िदमत में पहली हाज़िरीअगले दिन सुब्ह हम दोनों (आप और
मुनादी
क़िस्सा
क़िस्सा चहार दर्वेश
उसकी ज़बानी यह हाल सुन ने में मुझे तसल्ली हुई कि अगर यह चाहेगा तो मेरा
अमीर ख़ुसरौ
सूफ़ी लेख
मीराबाई और वल्लभाचार्य
मीरा के प्रभु सांवरो रंग रसिया डोलै हो।। परंतु यदि गहरे पैठ कर देखा जाय तो जान
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी लेख
पदमावत के कुछ विशेष स्थल- श्री वासुदेवशरण
मलिक मुहम्मद जायसी कृत पदमावत की भाषा ऊपर से देखने पर बोलचाल की देहाती अवधी कही
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
बहादुर शाह और फूल वालों की सैर
एक सन्नाटे का ’आलम था मगर हर शख़्स के बुशरे और आँखों से जोश टपक रहा