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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
ग़ज़ल
चराग़-ए-मह सीं रौशन-तर है हुस्न-ए-बे-मिसाल उस काकि चौथे चर्ख़ पर ख़ुर्शीद है अक्स-ए-जमाल उस का
सिराज औरंगाबादी
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फ़ारसी सूफ़ी काव्य
रूमी
ना'त-ओ-मनक़बत
रौनक़-ए-शान-ए-बे-निशाँ नाम-ओ-निशाँ में भी आजे़ब-ए-फ़िज़ा-ए-ला-मकाँ अब तो मकाँ में भी आ
मौलाना अ’ब्दुल क़दीर हसरत
ना'त-ओ-मनक़बत
फ़ना बुलंदशहरी
फ़ारसी कलाम
ऐ सर्व-ए-नाज़नीने ऐ तुर्क-ए-बे-नियाज़ेशोरे ज़दी ब-'आलम अज़ क़ामत-ए-दराज़े
पीर नसीरुद्दीन नसीर
ग़ज़ल
काम आख़िर जज़्बः-ए-बे-इख़्तियार आ ही गयादिल कुछ इस सूरत से तड़पा उन को प्यार आ ही गया
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
काम आख़िर जज़्बा-ए-बे-इख़्तियार आ ही गयादिल कुछ इस सूरत से तड़पा उन को प्यार आ ही गया