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ना'त-ओ-मनक़बत
ख़ुदा के नूर से रौशन हुआ है दो-जहाँ बे-शककि उस के मो'तरिफ़ हैं ये ज़मीन-ओ-आसमाँ बे-शक
मुस्तफ़ा ग़ज़ाली
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ना'त-ओ-मनक़बत
ख़ुद नूर और नूर की अपने ज़िया हैं आपहर इक सिफ़त में ज़ात से जल्वा-नुमा हैं आप
कामिल शत्तारी
ना'त-ओ-मनक़बत
साइम चिश्ती
दोहरा
वंजां मुट्ठड़ी रोही वुट्ठड़ी टोभा तार मतारां ।
वंजां मुट्ठड़ी रोही वुट्ठड़ी टोभा तार मतारां ।डेखां वंज कर माल दे लांघे घंड घंड विच्च तवारां ।
ख़्वाजा ग़ुलाम फ़रीद
कलाम
सनम के जिस्म में आ कर नफ़्स का तार कहते हैंबरहमन बन के ख़ुद गर्दन में हम ज़ुन्नार रखते हैं
आशिक़ हैदराबादी
ना'त-ओ-मनक़बत
या मुस्तफ़ा नूर-उल-हुदा सानी तिरा कोई नहींशम्सुज़्ज़हा कोई नहीं बदरुद्दुजा कोई नहीं
फ़ना बुलंदशहरी
ना'त-ओ-मनक़बत
जल्वा-ए-नूर-ए-ख़ुदा सल्ले-'अला कुछ और है'अज़्मत-ए-मौला 'अली शेर-ए-ख़ुदा कुछ और है
महमूद अहमद रब्बानी
शबद
प्रेम का अंग - सुन्न सिखर चढ़ि जाहब हो बाजत अणहद तार
सुन्न सिखर चढ़ि जाहब हो बाजत अणहद तारसुन्न सिखर चढ़ि जाहब हो बाजत अणहद तार
गुलाल साहब
ना'त-ओ-मनक़बत
है नूर-ए-निगाह-ए-शह-ए-यहया शरफ़ुद्दीनमलजा मिरा मावा मिरा आक़ा शरफ़ुद्दीन