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शे'र
ब-रोज़-ए-हश्र हाकिम क़ादिर-ए-मुतलक़ ख़ुदा होगाफ़रिश्तों के लिखे और शैख़ की बातों से क्या होगा
हरी चंद अख़्तर
सूफ़ी लेख
शैख़ सा’दी का तख़ल्लुस किस सा’द के नाम पर है ?
कि ख़मर मी –ख़ुरद-ओ-का’बतैन मी-बाज़दब-रोज़-ए-हश्र हमी तर्सम् अज़ रसूल-ए-ख़ुदा
एजाज़ हुसैन ख़ान
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
मीरी अज़ हिर्सस्त चूँ मोर-ओ-तहव्वुर हम-चू मारपस ब-रोज़-ए-हश्र यक रंगनद मोर-ओ-मार-ओ-मीर
हकीम सनाई
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ना'त-ओ-मनक़बत
मेरी क़िस्मत औज पर होगी ब-रोज़-ए-हश्र भीमिल गया गर मुझ को भी क़ुर्ब-ओ-जवार-ए-फ़ातिमा
उवेस रज़ा अम्बर
शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
फ़ारसी कलाम
ब-रोज़-ए-हश्र लर्ज़ानम-ओ-तर्सां बे-सर-ओ-सामाँमदद फ़र्मा मदद फ़र्मा मन-ए-ला-चार या-अल्लाह
ख़्वाजा नाज़िर निज़ामी
ना'त-ओ-मनक़बत
जो दिल से उन पे दरूद-ओ-सलाम पढ़ते हैंब-रोज़-ए-हश्र उन्हें कोई इज़्तिराब नहीं
इल्तिफ़ात अमजदी
बैत
ये रोज़-ए-हश्र है मालिक सवालों पर भी आ जाना
ये रोज़-ए-हश्र है मालिक सवालों पर भी आ जानाज़रा दीदार तो कर लूँ तिरा ऐ रू-ए-जानाना
मोहम्मद समी
ना'त-ओ-मनक़बत
ब-रोज़-ए-हश्र बख़्शिश के लिए इतना ज़रूरी हैदुरूद-ए-पाक होंटों पर सदा अपने सजा रखना
सलीम दर्द वारसी
ना'त-ओ-मनक़बत
दम-ए-आख़िर सर-ए-मदफ़न ब-रोज़-ए-हश्र काम आएमिरा हाफ़िज़ मिरा हाजी मिरा वाली मिरा वारिस
अकबर वारसी मेरठी
ग़ज़ल
ब-रोज़-ए-हश्र हाकिम क़ादिर-ए-मुतलक़ ख़ुदा होगाफ़रिश्तों के लिखे और शैख़ की बातों से क्या होगा
हरी चंद अख़्तर
कलाम
ब-रोज़-ए-हश्र हाकिम क़ादिर-ए-मुतलक़ ख़ुदा होगाफ़रिश्तों के लिखे और शैख़ की बातों से क्या होगा
हरी चंद अख़्तर
शे'र
हश्र के दिन इम्तिहाँ पेश-ए-ख़ुदा दोनों का हैलुत्फ़ है उनकी जफ़ा मेरी वफ़ा से कम रहे