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बैतुल-हरम के साथ न बैतुस-सनम के साथ

कामिल शत्तारी

बैतुल-हरम के साथ न बैतुस-सनम के साथ

कामिल शत्तारी

MORE BYकामिल शत्तारी

    बैतुल-हरम के साथ बैतुस-सनम के साथ

    जीता हूँ इक हक़ीक़त-ए-बे-कैफ़-ओ-कम के साथ

    महसूस ये हुआ मुझे एहसास-ए-ग़म के साथ

    मैं उस के दम के साथ हूँ वो मेरे दम के साथ

    आँसू सँभल के पोंछिए बीमार-ए-इ’श्क़ हूँ

    दिल भी लगा हुआ है मेरी चश्म-ए-नम के साथ

    वो याद कर के रोएँगे मुझ को तमाम उ’म्र

    ये उन के सारे नाज़ हैं मेरे ही दम के साथ

    मंशा-ए-यार का हूँ खिलौना बना हुआ

    वो खेलते हैं मेरे वजूद-ओ-अदम के साथ

    हूँ हर मआल-ए-कार से बे-फ़िक्र-ओ-मुतमइन

    दामन बंधा है दामन-ए-तुर्क-ए-अ'जम के साथ

    मुमकिन नहीं वो हश्र में रुस्वा करे मुझे

    जिसके करम से गुज़री है अब तक भरम के साथ

    मुझ बे-अ’मल को अहल-ए-अ'मल में ढूँडिए

    रहता हूँ उस के दामन-ए-फ़ज़्ल-ओ-करम के साथ

    'कामिल' ब-रोज़-ए-हश्र मिरे सज्दा-हा-ए-शौक़

    मशहूर होंगे यार के नक़्श-ए-क़दम के साथ

    स्रोत :
    • पुस्तक : सुरूद-ए-रूहानी (पृष्ठ 253)
    • संस्करण : Second

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