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सूफ़ी उद्धरण
जो शख़्स सब की भलाई मांगता है, अल्लाह उसका भला करता है, जिन लोगों ने मेहमानों के लिए लंगर-ख़ाने खोल दिए हैं कभी मुहताज नहीं हुए
वासिफ़ अली वासिफ़
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कुंडलिया
बंदा बाजी झूठ है, मत सांची करमान।
कहाँ अकब्बर खान, भले की रहे भलाई।फतेह सिंह महाराज, देख उठ चल गए भाई।।
दीन दरवेश
खंडकाव्य
इंद्रावति -जीव कहानी खंड
हमसों अंत करै सतुराई। कहां सत्रुसों होइ भलाई।है यह कांट बाट मों मोही। पगमों धँसत न दाया बोई।
नूर मोहम्मद
कविता
पिय के संग एरी नार चौसर क्यों नहि खेले
आठ जाम इनकी सुध राखो यह जो खुले दस द्वार।तेरे भलाई सजी मैं प्यारी किसमें नरद मारो दश है द्वार।।
अज़ीज़ दीन
दकनी सूफ़ी काव्य
मसनवी 'तुराब' दकनी
उतरते उस के ताबीज़ाँ सों यक साँमुए तलपट की सब सुन कर भलाई