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सूफ़ी लेख
बिहारी-सतसई की प्रतापचंद्रिका टीका - पुरोहित श्री हरिनारायण शर्म्मा, बी. ए.
प्रजापाल सुख जाल भयउ भुवपाल सवाई। श्री जयसिंघ दयाल भाल में अति अधिकाई।।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
राग आधारित पद
ध्रुपद खम्माच- बंसी मुख सों लगाय ठाढ़े श्री राधा वर।
सीस मुकुट चमके मकराकृत कुंडल दमके।'फरहत' अति प्यारी घुघुरारी अलक तिलक भाल।।
फरहत
सूफ़ी लेख
चरणदासी सम्प्रदाय का अज्ञात हिन्दी साहित्य - मुनि कान्तिसागर - Ank-1, 1956
जोग जुक्ति अहि निसी भाल इक चंद प्रकासी।।पाटंबर बनि पोति हदै दरसोइ हुआ छिय।
भारतीय साहित्य पत्रिका
सतसई
।। बिहारी सतसई ।।
पावक सो नयननु लगै जावकु लाग्यौ भाल।मुकुरु होहुगे नैंक मैं मुकुरु विलोकौ लाल।।79।।
बिहारी
पद
मो मन परीं है यह बान ।
प्रगट भाल विसाल राजत भौंह मनहुं कमान ।अंग अंग अनंग की छबि, पीत पट फहरान ।।
प्रताप बाला
कविता
अलक वर्णन- अलक मुबारक तिय बदन लटकि परी यों साफ।
लगी मुबारक झुकि अलक, लाल बेंदली भाल।लेत मोल ससि ते सुवा, देत मोल मनि ब्याल।।
मुबारक अली बिलग्रामी
कविता
तिल वर्णन- गोरे मुख पर तिल लसे ताहि करो परनाम।
बरुनी तरकस दुहु दिसा, भ्रू धनु लोचन भाल।अलक सेल अति लसत है तिल कपोल पर ढाल।।
मुबारक अली बिलग्रामी
महाकाव्य
।। रसप्रबोध ।।
सखिन सिखाये तिय कह्यौ लखि जावक पिय भाल।ताही के घर जाइये जेहि पग लागे लाल।।405।।
रसलीन
पद
गुरु-भक्ति - प्रेमी सुने प्रेम की बात।।
खाते पीते चलते फिरते सोवत जागत बिसरि न जात।।खटकत रहे भाल ज्यों हियरे दर्दी के ज्यों दरद समात ।।
शिवदयाल सिंह
सूफ़ी लेख
महाकवि सूरदासजी- श्रीयुत पंडित रामचंद्र शुक्ल, काशी।
औचक ही देखी तहँ राधा, नैन विसाल भाल दिए ररी। सूरश्याम देखत ही रीझे, नैन नैन मिलि परी ठगोरी।।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
राग आधारित पद
ठुमरी- तिरछी चितवन मतवारी चाल जियामा मोरे बस गई रे।
टोना सा कछु पढ़ फूँक दीन, बौरानी सी ह्वै गई रे।।लोचन विशाल दोउ लाल, मन मस्त मस्त भयो देख भाल।