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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ पर
अकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
फ़ारसी कलाम
मकीन-ए-अ’र्श-ए-मुअज़्ज़म जनाब-ए-मुनइ'म-ए-पाक
फ़रोग़-ए-ताले’-ए-आदम जनाब-ए-मुनइ'म-ए-पाक
शाह मोहसिन दानापुरी
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सूफ़ी कहानी
ग़ैर-आबाद मकान के दरवाज़े पर एक शख़्स का भैरव राग अलापना- दफ़्तर-ए-शशुम
एक शख़्स किसी हवेली के दरवाज़े पर भैरव गा रहा था हालाँकि अभी आधी रात आई
रूमी
ना'त-ओ-मनक़बत
है शम्-ए'-तजल्ली रुख़-ए-दिल जु-ए-मोहम्मद
परवाना-सिफ़त खिंचते हैं दिल सू-ए-मोहम्मद
अख़तर ख़ैराबादी
ग़ज़ल
फ़स्ल-ए-गुल का ग़म दिल-ए-नाशाद पर बाक़ी रहा
हश्र लग ये मुज़लिमा सय्याद पर बाक़ी रहा
सिराज औरंगाबादी
ना'त-ओ-मनक़बत
है दिल में जल्वा-ए-रुख़-ए-ताबान-ए-मुस्तफ़ा
क़िंदील-ए-का'बा है तह-ए-दामान-ए-मुस्तफ़ा
शकील बदायूँनी
कलाम
अज़्म-ए-फ़रियाद! उन्हें ऐ दिल-ए-नाशाद नहीं
मस्लक-ए-अहल-ए-वफ़ा ज़ब्त है फ़रियाद नहीं