परिणाम "मरज़"
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मरज़-ए-इश्क़ दिल को ज़ोर लगाजाँ-ब-लब हूँ ख़याल-ए-गोर लगा
मरज़ 'इश्क़ का बीमार भी किया होता हैजितनी करता है दवा और सिवा होता है
विसाल : जब आप की उम्र 67बरस की हुई तो अ’ला लत का सिलसिला शुरू हुआ । ईलाज होता रहा मगर मरज़ तरक़्क़ी करता रहा ।अवाइल-ए-रजब से मरज़ में ज़्यादती हो गई ।ज़ो’फ़-ओ-नक़ाहत की हालत में भी फ़र्ज़ के अ’लावा तहज्जुद के पाबंद थे। विसाल से दो दिन पेश्तर ये दो शे’र ज़्यादा विर्द-ए- ज़बान थे:ख़ुदा की हुज़ूरी में दिल जा रहा है ये मरना है इस का मज़ा आ रहा है
कित्थ सेहत डिठुम कत्थ मरज़ डिठुमकित्थ चुस्त अते बीमार डिठुम
कु़ल्बः हल है ज़राअत खेतीमरज़-ओ-बूम है कहिये धरती
मरज़مرض
sickness, infirmity, disease
गर मरज़ हो दवा करे कोईमरने वाले का क्या करे कोई
तबीबो छोड़ दो मेरी दवा तुममरज़ कैसा ये 'इश्क़-ए-मुस्तफ़ा है
मिले गर मुझे शहर तैबा की मिट्टीमरज़ दूर अपना भगाया करूँ मैं
यके जुज़्व-ए-जहाँ चूँ बे-मरज़ नीस्ततबीब-ए-'इश्क़ रा दुक्काँ कुदामस्त
कहीं हक़ीक़त-ए-जाँ-काही-ए-मरज़ लिखिएकहीं मुसीबत-ए-ना-साज़ी-ए-दवा कहिए
वही ख़ुद मरज़ है वही ख़ुद दवाहर आज़ार की ख़ुद शिफ़ा है वही
यके जुज़्व-ए-जहाँ चूँ बे-मरज़ नीस्ततबीब-ए-इ'श्क़ रा दुक्काँ कुदाम अस्त
मुझ से मेरे भाइयों से दूर होदुख मरज़ हर क़िस्म का अच्छे मियाँ
गश्त रंज अफ़्ज़ून-ओ-हाजत ना-रवाआँ कनीज़क अज़ मरज़ चूँ मू-ए-शुद
इस्म-ए-आ'ज़म से उन का इस्म-ए-शरीफ़हर मरज़ की दवा मोहम्मद हैं
विसाल उस का किसी दिन होगा सुनियोजुदाई का मरज़ है जिस को लाहिक़
हमारा मरज़ इ'श्क़-ए-रू-ए-अ'ली हैमसीहा कब उस की दवा जानता है
मरज़-ए-'इश्क़ बढ़ गया है तबीबोमिरा दर्द अब ला-दवा हो गया है
हर मरज़ की हक़ ने पैदा की दवाक्यूँ न पैदा की दवाए दर्द दिल
मिल जाये यक़ीं है मरज़-ए-ग़म से नजातनामः नहीं तावीज़-ए-शिफ़ा लिखा है
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