हिकायत-ए-’आशिक़ शुदन-ए-बादशाहे बर कनीज़के-ओ-ख़रीदन-ए-बादशाह कनीज़क रा
हिकायत बादशाह का लौंडी पर आशिक़ होना और बादशाह का लौंडी को ख़रीदना
बूद शाहे दर ज़माने पेश अज़ ईं
मुल्क-ए-दुनिया बूदश-ओ-हम-मुल्क-ए-दीं
अब से पहले ज़माने में, एक बादशाह था
(जिसकी हुकूमत) मुल्क-ए-दुनिया पर भी थी और मुल्क दीन पर भी
इत्तिफ़ाक़न शाह रोज़े शुद सवार
बा-ख़वास-ए-ख़ेश अज़ बहर-ए-शिकार
इत्तिफ़ाक़न! एक दिन बादशाह सवार हुआ
अपने ख़्वास के साथ शिकार के लिए
यक कनीज़क दीद शह बर शाह-राह
शुद ग़ुलाम-ए-आँ कनीज़क जान-ए-शाह
उसने रास्ता पर एक लौंडी देखी
बादशाह की जान उस लौंडी की ग़ुलाम बन गई
मुर्ग़-ए-जानश दर क़फ़स चूँ मी-तपीद
दाद माल-ओ-आँ कनीज़क रा ख़रीद
उसकी जान का परिंदा जब पिंजड़े में तड़पा
माल दिया और उस लौंडी को ख़रीद लिया
चूँ ख़रीद ऊ-रा-ओ-बरखु़र्दार शुद
आँ कनीज़क अज़ क़ज़ा बीमार शुद
जब उसने उसको ख़रीद लिया और कामयाब हो गया
वो लौंडी तक़दीर से बीमार हो गई
आँ यके ख़र दाश्त पालानश न-बूद
याफ़्त पालाँ गुर्ग-ए-ख़र रा दर रबूद
एक शख़्स के पास गधा था उसका पालान न था
उसने पालान पा लिया तो, गधे को भेड़िया ले गया
कूज़ः बूदश आब मी नामद ब-दस्त
आब रा चूँ याफ़्त ख़ुद कूज़े शिकस्त
उस के पास प्याला था, पानी हाथ न आया
जब पानी पाया ख़ुद प्याला टूट गया
शह तबीबाँ जम्अ' कर्द अज़ चप-ओ-रास्त
गुफ़्त जान-ए-हर दो दर दस्त-ए-शुमास्त
दाएँ-बाएँ से तबीबों ने बादशाह को इकठ्ठा किया
कहा, दोनों की जान तुम्हारे हाथ में है
जान-ए-मन सहलस्त जान-ए-जानम ऊस्त
दर्द-मंद-ओ-ख़स्तःअम दर्मानम ऊस्त
मेरी जान मा’मूली है, मेरी जान की जान वो है
मैं दुखी और ज़ख़्मी हूँ मेरा ‘इलाज वो है
हर कि दर्माँ कर्द मर्जान-ए-मरा
बुर्द गंज-ओ-दुर्र-ओ-मर्जान-ए-मरा
जिसने मेरी जान का ‘इलाज कर दिया
वो मेरे मोती और मूँगे का ख़ज़ाना ले गया
जुमल: गुफ़तंदश कि जाँ-बाज़ी कुनेम
फ़ह्म गर्द आरेम-ओ-अंबाज़ी कुनेम
सब ने कहा, हम जान लड़ा देंगे
ख़ूब ग़ौर करेंगे और मिल कर करेंगे
हर यके अज़ मा मसीह-ए-आ'लमेस्त
हर अलम रा दर कफ़-ए-मा मरहमेस्त
हम में से हर एक दुनिया का मसीहा है
हमारे पास हर दर्द का मरहम है
गर ख़ुदा ख़्वाहद न-गुफ़्तंद अज़ बतर
पस ख़ुदा ब-नुमूद-ए-शाँ 'इज्ज़-ए-बशर
तकब्बुर की वजह से, उन्होंने इंशा-अल्लाह न कहा
तो ख़ुदा ने इन्सान की मजबूरी उन पर वाज़ेह कर दी
तर्क-ए-इस्तिसना मुरादम क़स्वतेस्त
ने हमीं गुफ़्तन कि 'आरिज़ हालतेस्त
इंशा-अल्लाह न कहने से मेरी मुराद, सियह-दिली है
ये भी नहीं कहना चाहिए, क्यूँकि ये एक ‘आरिज़ी हालत है
ऐ बसे ना-वर्दः इस्तिसना ब-गुफ़्त
जान-ए-ऊ बा-जान-ए-इस्तिसनास्त जुफ़्त
बहुत से लोगों ने इंशा-अल्लाह कहे ब-ग़ैर बात कही है
(लेकिन) उनकी जान, इंशा-अल्लाह की रूह के साथ है
हर चे कर्दन्द अज़ 'इलाज-ओ-अज़ दवा
गश्त रंज अफ़्ज़ून-ओ-हाजत ना-रवा
जिस क़दर भी उन्होंने ‘इलाज और दवा की
मरज़ बढ़ा, और मक़सद ला-हासिल रहा
आँ कनीज़क अज़ मरज़ चूँ मू-ए-शुद
चश्म-ए-शह अज़ अश्क-ए-ख़ूँ चूँ जू-ए-शुद
वो लौंडी मरज़ की वजह से बाल जैसी हो गई
बादशाह की आँख ख़ून के आँसू से नहर की तरह हो गई
अज़ क़ज़ा सर कंगबीं सफ़रा नमूद
रोग़न-ए-बादाम ख़ुश्की मी फ़ज़ूद
तक़दीर से सिकंज-बीन ने सफ़रा बढ़ाया
रौग़न-ए-बादाम ख़ुश्की बढ़ाता था
अज़ हलैलः क़ब्ज़ शुद इतलाक़ रफ़्त
आब आतिश रा मदद शुद हम-चु नफ़्त
हेड़ से क़ब्ज़ हो गया, दस्त ख़त्म हुए
पानी, मिट्टी के तेल की तरह आग की मदद बन गया
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