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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
कलाम
हमारा शुग़्ल है रातों को रोना याद-ए-दिलबर मेंहमारी नींद है महव-ए-ख़याल-ए-यार हो जाना
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
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कलाम
मैं महव-ए-तौफ़ पैहम था लिए पैमाना का'बे मेंमआ'ज़-अल्लाह वो मेरी लग़्ज़िश-ए-मस्ताना का’बे में
नुशूर वाहिदी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
रूमी
ग़ज़ल
आक़िल रेवाड्वी
कलाम
इस क़दर आँखें मिरी महव-ए-तमाशा हो गईंपुतलियाँ पथरा के आख़िर संग-ए-मूसा हो गईं
ख़्वाजा हैदर अली आतिश
ग़ज़ल
ख़ार-ए-हसरत दिल में लेकर उट्ठे बज़्म-ए-यार सेये वो कांटे हैं जिन्हें लाए हैं हम गुलज़ार से
शम्शाद लखनवी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
अज़ किनार-ए-ख़्वेश याबम हर दमी मन बू-ए-यारचूँ न-गीरम ख़्वेश्तन रा हर शबी अंदर किनार