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सूफ़ी लेख
बाबा फ़रीद के मुर्शिद और चिश्ती उसूल-ए-ता’लीम-प्रोफ़ेसर प्रीतम सिंह
चूँकि सिलसिला-ए-ता’लीम मुद्दतुल-उ’म्र जारी रहता था इसलिए जब मुरीद का मुर्शिद से रिश्ता क़ाएम हो जाता
मुनादी
कलाम
जद दा मुर्शिद कासा दितड़ा तद दी बेपरवाही हूकी होया जे रातीं जागें मुर्शिद जाग न लाई हू
सुल्तान बाहू
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कलाम
मुर्शिद हादी सबक़ पढ़ाया पढ़यों बिना पढीवे हूउँगलियाँ विच कंनां दित्तियां, सुणयों बिना सुणीवे हू
सुल्तान बाहू
कलाम
मुर्शिद है शाहबाज़ इलाही रलया संग हबीबाँ हूतक़दीर इलाही छिक्कियां डोराँ मिलसी नाल नसीबाँ हू
सुल्तान बाहू
शे'र
मुर्शिद मक्का तालिब हाजी का’बा इ’श्क़ बड़ाया हूविच हुज़ूर सदा हर वेले करिए हज सवाया हू
सुल्तान बाहू
कलाम
अलिफ़ इल्ला चम्बे दी बूटी मुर्शिद मन विच लान्दा हूजिस गत इते सोहणा राज़ी ओहो गत सिखांदा हू
सुल्तान बाहू
कलाम
कुन-फ़-यकून जदोका सुणया, डिट्ठा ओह दरवाज़ा हूमुर्शिद सदा हयाती वाला ओह ख़िज़र ते ख़्वाजा हू
सुल्तान बाहू
कलाम
अंदर बूटी मुश्क मचाया जाँ फुल्लाँ ते आई हूजीवे मुर्शिद कामिल 'बाहू' जैं ईह बूटी लाई हू
सुल्तान बाहू
कलाम
इतना डठियाँ सब्र नूँ मैं दिल होर कते वल भुजाँ हूमुर्शिद दा दीदार जो 'बाहू' मैनूँ लिख करोड़ां हजाँ हू
सुल्तान बाहू
ना'त-ओ-मनक़बत
जहाँ में नूर बिखरा है मेरे मुर्शिद क़लंदर कादिलों में 'इश्क़ बरसा है मेरे मुर्शिद क़लंदर का
अज्ञात
कलाम
कल्लर वाली कुंधी नूँ चा चाँदी ख़ास बणावे हूजिस मुर्शिद इथ कुझ न कीता कूड़े लारे लावे हू