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ग़ज़ल
दोनों तरफ़ हैं चेहरे पर गेसू-ए-मुश्क-ए-फ़ाम दोजम' है एक आन में ज़िद्दें सबाह-ओ-शाम दो
अख़तर रज़ा ख़ान
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
माह-ए-मन दर पर्दः दारद ज़ुल्फ़-ए-मुश्क अफ़्शाँ हनूज़बर ने-फ़िगंदस्त पर्द: अज़ रुख़-ए-रख़्शाँ हनूज़
रूमी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
ऐ बाद-ए-मुश्क-बू ब-गुज़र सू-ए-आँ-निगारब-कुशा गिरह ज़े-ज़ुल्फ़श व बू-ए-ब-मन बयार
हाफ़िज़
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सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
मुश्क काफूर अस्त कस्तूरी कपूर।हिंदवी आनंद शादी और सरूर।।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
मुश्क काफूर अस्त कस्तूरी कपूर। हिंदवी आनंद शादी और सरूर।।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
गूजरी सूफ़ी काव्य
ज़ुलेख़ा का सिंगार
ज़ुलेख़ा के थे ऐसे बाल सर में,ना आवे मुश्क उन आगल नज़र में।
अमीन गुजराती
सूफ़ी लेख
अमीर ख़ुसरो - तहज़ीबी हम-आहंगी की अ’लामत - डॉक्टर अनवारुल हसन
कि बूयश मुश्क-बार आमद चू मुलहा।।चू मा’शूक़-ए-समन पुर-नाज़ परवर्द।