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कलाम
दाग़ देहलवी
कलाम
शकील बदायूँनी
कलाम
ज़रा और मुस्कुरा लूँ दिल-ओ-जाँ शिकार-ए-ग़म हैंकि मसर्रतों के लम्हे मेरी ज़िंदगी में कम हैं
बह्ज़ाद लखनवी
शे'र
मेरी ज़िंदगी पे न मुस्कुरा,मुझे ज़िंदगी का अलम नहींजिसे तेरे ग़म से हो वास्ता वो ख़िज़ाँ बहार से कम नहीं
शकील बदायूँनी
सूफ़ी लेख
हज़रत ख़्वाजा नूर मोहम्मद महारवी - प्रोफ़ेसर इफ़्तिख़ार अहमद चिश्ती सुलैमानी
आपने मुस्कुरा कर ये शे’र पढ़ा:मा बरा-ए-वस्ल कर्दन आमदेम
मुनादी
सूफ़ी लेख
उर्स के दौरान होने वाले तरही मुशायरे की एक झलक
मुस्कुरा के कहते हैं ये मेहनताना हो गयाबार क्यों तुझको हुआ ये आशयाँ ऐ बाग़बाँ