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सूफ़ी कहानी
हज़रत-ए-हमज़ा का मैदान-ए-जंग में ज़िरह पहने ब-ग़ैर आना- दफ़्तर-ए-सेउम
अय्याम-ए-जवानी में हज़रत-ए-हमज़ा हमेशा जंगों में ज़िरह पहन कर शरीक होते थे लेकिन आख़िर-ए-उ’म्र में आपका
रूमी
शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
ग़ज़ल
'अक़्ल को छोड़ के दिल 'इश्क़ के मैदान में आदेख ले नूर-ए-ख़ुदा 'आलम-ए-’इरफ़ान में आ
सय्यद अमजद अ'ली शाह
सूफ़ी शब्दावली
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सूफ़ी लेख
हिन्दुस्तान में क़ौमी यक-जेहती की रिवायात-आ’ली- बिशम्भर नाथ पाण्डेय
बदरुद्दीन जिन्हें, पीर बोध शाह भी कहते हैं, गुरु के लिए अपने चार बच्चों और भाईयों
मुनादी
सूफ़ी कहानी
एक यहूदी वज़ीर का मक्र–ओ-फ़रेब से नसरानियों में तफ़रक़ा डलवाना - दफ़्तर-ए-अव्वल
हर अमीर एक हाथ में तेग़ और दूसरे हाथ में वसीयत- नामा लिए मैदान-ए-जंग में उतरा
रूमी
फ़ारसी कलाम
अ'र्ज़-ए-हस्ती ज़ंग बर आईनः-ए-दिल मी-शवदता-नफ़स ख़त मी-कशद ईं सफ़्हः बातिल मी-शवद
बेदिल अज़ीमाबादी
सूफ़ी कहानी
दर्ज़ी का एक मुद्दई’ तुर्क के कपड़े से टुकड़े चुराना- दफ़्तर-ए-शशुम
उसने पूछा कि ऐ दास्तान-गो ये तो बता कि तुम्हारे शहर में कौन सा दर्ज़ी मक्र-ओ-दग़ा
रूमी
ग़ज़ल
शहीद-ए-इ’श्क़-ए-मौला-ए-क़तील-ए-हुब्ब-ए-रहमानेजनाब-ए-ख़्वाजः क़ुतुबुद्दीं इमाम-ए-दीन-ओ-ईमाने
वाहिद बख़्श स्याल
सूफ़ी कहावत
रू-ए ज़ेबा मरहम-ए-दिलहा-ए-ख़स्ता अस्त-ओ-कलीद-ए-दरहा-ए-बस्ता
एक ख़ूबसूरत चेहरा दुखी दिलों के लिए मरहम की तरह होता है, और बंद दरवाजों के लिए कुंजी
वाचिक परंपरा
ना'त-ओ-मनक़बत
गुल-ए-बुस्तान-ए-मा'शूक़ी मह-ए-ताबान-ए-महबूबीनिज़ामुद्दीन सुल्तान-उल-मशाइख़ जान-ए-महबूबी