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पद
चैत- चैत निरजीवै न कोई, जीव जम को ग्रास है ।
बिषय तृष्णा लोभ बंशी, मोह माया जार है ।तात मात भ्रात बनिता, झूठ सब परिवार है ।।
तुलसीदास (ब्रजवासी)
सलोक
माया- माया भुलायो, सामी जोड़े जीअ खे।
माया भुलायो, सामी जोड़े जीअ खे।नागु द्रिसी नोडीअ मे, दूरो दहकायो।
सामी
सलोक
माया- माया मवासी, मोहे कयो मूढ़नि खे।
माया मवासी, मोहे कयो मूढ़नि खे।भुली भवन पाणही, चित मे चौरासी।
सामी
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सलोक
उत्तमा उत्तम चिंतहि, मोह चिंतहि मद्धमा।।
उत्तमा उत्तम चिंतहि, मोह चिंतहि मद्धमा।।अधमा कायम चिंतहि पर चिंतहि अधमाधमा।।
अब्दुल क़ुद्दूस गंगोही
छप्पय
जहां जीव तहाँ सीव, वीचि माया का सरवर।
जहां जीव तहाँ सीव, वीचि माया का सरवर।गिरवर अजंग उचंग, विवधि विष का वन तरवर।।
महाराज हरिदास
पद
पहले मया-मोह को छोड़ के हर से मारे मने को
पहले मया-मोह को छोड़ के हर से मारे मने कोपेम की आग लगाए के ऐ 'दिलदार' जलावे तन को