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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
बैत
मुराआत दहक़ान कुन अज़ बहर-ए-ख़ेश
मुराआत दहक़ान कुन अज़ बहर-ए-ख़ेशकि मज़दूरे ख़ुशदिल कुनद कार-ए-बेश
सादी शीराज़ी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
रहमे कुन-ओ-मशो ज़े मन ऐ जान-ए-मन जुदातर्सम कि अज़ फ़िराक़ शुद जाँ ज़े तन जुदा
शाह अकबर दानापूरी
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सूफ़ी कहावत
हर के रा मी ख़्वाही बा श्नासी या बा उ मु'आमला कुन या सफ़र कुन
किसी व्यक्ति की सच्ची प्रकृति को जानने के लिए, उसके साथ व्यवहार करें या यात्रा करें।
वाचिक परंपरा
ना'त-ओ-मनक़बत
जमाल-ए-सुब्ह-ए-अज़ल वज्ह-ए-कुन-फ़काँ तुम होहरीम-ए-साहिब-ए-फ़ितरत के राज़-दाँ तुम हो
कलीम उस्मानी
ना'त-ओ-मनक़बत
रसाई ’अक़्ल-ओ-दानाई की हर्फ़-ए-कुन-फ़काँ तक हैशु’ऊर-ओ-आगही ’इश्क़-ए-वज्ह-ए-ईं-ओ-आँ तक है
तल्हा रिज़वी बरक़
फ़ारसी कलाम
ऐ माह-ए-ख़ूबाँ यक शबे बा-ख़्वेश मेहमाँ कुन मरावज़ आफ़ताब-ए-रु-ए-ख़ुद चूँ सुब्ह ख़ंदाँ कुन मरा
अमीर हसन अला सिज्ज़ी
बैत
बदाँ रा नवाज़िश कुन ऐ नेक-मर्द
बदाँ रा नवाज़िश कुन ऐ नेक-मर्दकि सग पास दारद चू नान-ए-तू ख़ुर्द
सादी शीराज़ी
बैत
बद-ओ-नेक रा बज़्ल कुन सीम-ओ-ज़र
बद-ओ-नेक रा बज़्ल कुन सीम-ओ-ज़रकि ईं कस्ब-ए-ख़ैरस्त-ओ-आँ दफ़'अ-ए-शर