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ना'त-ओ-मनक़बत
मौसम-ए-गुल मौसम-ए-गुलज़ार होना चाहिएहर घड़ी ज़िक्र-ए-शह-ए-अबरार होना चाहिए
शमीम अंजुम वारसी
शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
ना'त-ओ-मनक़बत
क्या लुत्फ़ का मौसम है मोहब्बत की फ़ज़ा हैछाई दर-ए-शहबाज़ पे रहमत की घटा है
इश्तियाक़ आलम शहबाज़ी
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ना'त-ओ-मनक़बत
शैख़ मुख़तार अहमद
फ़ारसी कलाम
जोश ज़द मस्ती व चश्म-ए-दिलबराँ मय-ख़ान: शुदमुश्त-ए-ख़ाक-ए-मय परस्ताँ चर्ख़ ज़द-ओ-पैमान: शुद
मिर्ज़ा मज़हर जान-ए-जानाँ
कलाम
फ़स्ल-ए-गुल में रंग मस्ती का जमाना चाहिएउठ के मस्जिद से सू-ए-मय-ख़ाना जाना चाहिए
इम्तियाज़ हुसैन वाक़िफ़
कलाम
फ़ना बुलंदशहरी
कलाम
अज़ल में जो सदा मैं ने सुनी थी कैफ़-ए-मस्ती मेंवही आवाज़ अब तक सुन रहा हूँ साज़-ए-हस्ती में
ख़ादिम हसन अजमेरी
ग़ज़ल
आ’लम-ए-मस्ती है आईना-ए-रुख़ रुख़-ए-पुर-नूर काबे-ख़ुदी में देखते हैं हम तमाशा नूर का