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ना'त-ओ-मनक़बत
मौसम-ए-गुल मौसम-ए-गुलज़ार होना चाहिएहर घड़ी ज़िक्र-ए-शह-ए-अबरार होना चाहिए
शमीम अंजुम वारसी
सूफ़ी शब्दावली
शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
ना'त-ओ-मनक़बत
आँखे हों तेरी याद में नम और ज़्यादाझुक जाए ये दिल सू-ए-हरम और ज़्यादा
अ'ब्दुल सत्तार नियाज़ी
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ना'त-ओ-मनक़बत
क्या लुत्फ़ का मौसम है मोहब्बत की फ़ज़ा हैछाई दर-ए-शहबाज़ पे रहमत की घटा है
इश्तियाक़ आलम शहबाज़ी
सूफ़ी कहावत
तर और ख़ुश्क बा-हम मी सोज़ंद
गीला और सूखा साथ में जलते हैं (अर्थात,गेहूं के साथ घुन भी पिसता है)।
वाचिक परंपरा
ना'त-ओ-मनक़बत
मा’दिन-ए-हिल्म-ओ-हया हज़रत-ए-ग़ौसुस्सक़लैनमख़्ज़न-ए-जूद-ओ-सख़ा हज़रत-ए-ग़ौसुस्सक़लैन
अज्ञात
ना'त-ओ-मनक़बत
फ़ख़्र-ए-रुसुल से साहिब-ए-जूद-ओ-सख़ा से हैबुनियाद दीन-ए-हक़ की रसूल-ए-ख़ुदा से है