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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
फ़ारसी कलाम
जान-ए-मुश्ताक़ाँ ज़े याद-ए-ख़्वेश शादाँ करद: ईरस्म-ए-ताज़: कर्द: ई ख़ुद रा चू पिन्हाँ करद: ई
मुमताज़ गंगोही
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ग़ज़ल
वक़्त-ए-आख़िर उन को मेरी याद गर आई तो क्याबाद मर जाने के मैं ने ज़िंदगी पाई तो क्या
ख़ुसरौ काकोरवी
ग़ज़ल
ये काफ़ी फ़ख़्र है शाह-ए-अरब को याद करते हैंबला से ज़िंदगी हम हिंद में बर्बाद करते हैं
रज़ा फ़िरंगी महल्ली
ना'त-ओ-मनक़बत
वो जिन की याद में महफ़िल सजी सरकार-ए-जीलाँ हैंवो जिन के नाम से बिगड़ी बनी सरकार-ए-जीलाँ हैं
सज्जाद हुसैन क़ादरी
सूफ़ी उद्धरण
तौबा जब मंज़ूर हो जाती है तो याद-ए-गुनाह भी ख़त्म हो जाती है
तौबा जब मंज़ूर हो जाती है तो याद-ए-गुनाह भी ख़त्म हो जाती है।
वासिफ़ अली वासिफ़
ना'त-ओ-मनक़बत
दिल में याद-ए-मुस्तफ़ा है सर में सौदा ग़ौस कामेरी हर हर साँस करती है वज़ीफ़ा ग़ौस का