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ग़ज़ल
ख़ुदा ने वस्ल की शब मुझ को किस मुश्किल में रक्खा हैबहुत कुछ कह चुका हूँ और बहुत कुछ दिल में रक्खा है
मुज़्तर ख़ैराबादी
ग़ज़ल
दीदः-ओ-दिल में मिरे रक्खा है क्या ऐ तुख़्म-ए-अश्करंग पैदा कर ज़मीं में मिल के दाने की तरह
अमीर मीनाई
पद
गुप्त होकर परगट होवे मथुरा गोकुल वासी
।।सोई कच्चा0।।वेदशास्त्र में कछु नही रक्खा पूर्णज्ञान को पाया
शिवदिन केसरी
गूजरी सूफ़ी काव्य
हश्रनामा
हश्रनामा इसका मैं रक्खा इसम,क़यामत का है इसमें ज़िक्र तमम्।।
अब्दुल्लाह वाइज़
छंद
मुख सरद चन्द्र पर ठहर गया जानो के बुद पसीने का।
मुख सरद चन्द्र पर ठहर गया जानो के बुंद पसीने का।या कुन्दन कमल कली ऊपर झमकाहट रक्खा मीने का।।
सीतल
नज़्म
।। सन्तोष ।।
जिस ढाल में रक्खा वह उसी ढाल में खुश हैं ।।पूरे हैं वही मर्द जो हर हाल में खुश हैं ।।6।।
नज़ीर अकबराबादी
ना'त-ओ-मनक़बत
बना रक्खा है जीने का सहारा 'इश्क़ में तेरेलगा रक्खा है मैं ने अपने दिल से तेरा ग़म वारिस