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ग़ज़ल
रब्त है नाज़-ए-बुताँ को तो मिरी जान के साथजी है वाबस्ता मिरा उन की हर इक आन के साथ
ख़्वाजा मीर दर्द
कलाम
रब्त बाक़ी रहे महबूब-ओ-मुहिब्ब में हरदमहम सितम-कश रहें और वो सितम-ईजाद रहे
मौलाना अ’ब्दुल क़दीर हसरत
समस्त