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सलाम
सलामुल्लाह ऐ ख़ज़्र-ए-जहाँ चूँ रहबरी कर्दीदो-बाला दर ज़मान-ए-ख़्वेश नाम-ए-हैदरी कर्दी
औघट शाह वारसी
ना'त-ओ-मनक़बत
हश्र में 'अमजद' सहारा बस उन्ही का चाहिएहर घड़ी जो बे-कसों की रहबरी है मुस्तफ़ा
सय्यद अमजद हुसैन
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
मा रा रसाँ ब-मंज़िल-ए-मक़सूद अज़ करमगुमराह-ए-राह-ए-रास्तम ऐ ख़िज़्र-ए-रहबरी
बेदम शाह वारसी
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ना'त-ओ-मनक़बत
रहबरी है काम तेरा ऐ इमाम-ए-सालिकाँकाम था औरों का मौला सिर्फ़ तब्लीग़-ओ-बलाग़
अब्दुल हादी काविश
ना'त-ओ-मनक़बत
भूला हुआ भटका हुआ 'सीमाब' है कब से खड़ादरकार है अब रहबरी पीरान-ए-साबिर कलियरी
सीमाब अकबराबादी
ना'त-ओ-मनक़बत
ज़ुल्मतों के दौर में ईमाँ की शमएँ' जल उठींरहबरी का हक़ निभाने ख़ुद मोहम्मद आ गए
सय्यद अमजद हुसैन
ना'त-ओ-मनक़बत
मेरी सम्त मुश्किलों ने जो कभी नज़र उठाईवहीं याद-ए-फ़ख़्र-ए-रहमत मेरी रहबरी को आई
शैदा वारसी
ग़ज़ल
'फ़ना' मिटी ज़िंदगी की उलझन क़रीब आने लगी है मंज़िलअमान-ए-रहबर की रहबरी से मुझे नया रास्ता मिला है
फ़ना बुलंदशहरी
कलाम
मोहम्मद अशरफ़
सूफ़ी लेख
हज़रत मख़्दूम दरवेश अशरफ़ी चिश्ती बीथवी
हज़रत मख़्दूम शाह दरवेश बचपन से ही सैर-ओ-तफ़रीह के दिल- दादा थे। इसके अ’लावा फ़न्न-ए-कुश्ती से