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शे'र
मुझे रास आएं ख़ुदा करे यही इश्तिबाह की साअ’तेंउन्हें ए’तबार-ए-वफ़ा तो है मुझे ए’तबार-ए-सितम नहीं
शकील बदायूँनी
शे'र
मुझे रास आएं ख़ुदा करे यही इश्तिबाह की साअ’तेंउन्हें ए’तबार-ए-वफ़ा तो है मुझे ए’तबार-ए-सितम नहीं
शकील बदायूँनी
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सवैया
रास लीला - आजु भटू इक गोपकुमार ने रास रच्यौ इक गोप के द्वारै
आजु भटू इक गोपकुमार ने रास रच्यौ इक गोप के द्वारैसुन्दर वानिक सौ 'रसखानि' वन्यौ वह छोहरा भाग हमारै
रसखान
कवित्त
रास लीला - अधर लगाइ रस प्याइ बाँसुरी बजाइ
रस रास सरस रँगीलो 'रसखानि' आनिजानि जोर जुगुति बिलास कियौ जन मै
रसखान
पद
कुंजन मध रच्यो रास अद्भुत गत लिए गोपाल
कुंजन मध रच्यो रास अद्भुत गत लिए गोपालकुंडल की झलक देख कोटि मदन ठठक्यो
बैजू बावरा
सवैया
रास लीला - काछ नयौ इकतौ बर जेउर दीठि जसोमति राज करयौ री
काछ नयौ इकतौ बर जेउर दीठि जसोमति राज करयौ रीया ब्रज-मंडल मे 'रसखान' कछू तब ते रस रास परयौ री
रसखान
छंद त्रिपदी
रस में बिरस जु अंतरधान। गोपिन कें उपजौ अभिमान।
द्वादस कोस रास परमान। ताकौ कैसें होत बखान।आस-पास जमुना झिली।।
भक्त कवि व्यास
कवित्त
नटवर बेष साजि मदन लजाने लाल,
सुमन समूह बरसावत बिमान चढे ,देखि देखि देव रास-मण्डल गोपाल को ।।
चंद्रकला बाई
पद
श्री बृन्दावन मो अजयत ब्रिजराज बिराजत है
श्रीपति कुंज निवासी सहस आयाश्रीविनास निज रास मंडल मो अस पाया ।
अमृत राय
सूफ़ी लेख
फ़ारसी लिपि में हिंदी पुस्तकें- श्रीयुत भगवतदयाल वर्मा, एम. ए.
या चकरंग चंद्र चंदना रास मोती।या इंद्र इन्दु चंदना पेराक्त हती।
हिंदुस्तानी पत्रिका
छंद त्रिपदी
नव कुंकुम जल बरसत जहाँ। उड़त कपूर-धूरि जहँ तहाँ।
तहाँ स्यामघन रास जु रच्यौ। मर्कतमनि कंचन सों खच्यौ।सोभा कहत न आवही।।
भक्त कवि व्यास
छंद त्रिपदी
घरु-डरु बिसरयौ बढ़यौ उछाहु। मनचिंत्यौ पायौ हरि नाहु।
अंजन-मंजन अंग-सिंगार। पट-भऊषन, सिर छूटे बार।रास-रसिक-गुन गाइहौं।।
भक्त कवि व्यास
दकनी सूफ़ी काव्य
तूतीनामा- चुन उस गोहराँ के समन्द का गम्भीर
शहॉ पास नई कुच सो उस पास था............. नौंरतन गंज नव रास था