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सूफ़ी लेख
अलाउल की पदमावती- वासुदेव शरण अग्रवाल- Ank-1, 1956
बनखँड बिरिख रहा नहिं कोई। कवन डर जेहि लागि न रोई।। एक बाट गइ हिरदे दोसर गई महोब।
भारतीय साहित्य पत्रिका
सूफ़ी लेख
जायसी का जीवन-वृत्त- श्री चंद्रबली पांडेय एम. ए., काशी
ना नारद तब रोई पुकारा। एक जुलाहे सौं मैं हारा।। प्रेम तंतु निति ताना तनई। जप तप साधि सैकरा भरई।।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
खंडकाव्य
यूसुफ़ जुलेखा (स्वप्न दर्शन खंड)
उठि बैठी मुख सँवरत सोई। नई लगन कहि सकै न रोई।जब संवरै मुख तब बिलखाई। पै सुलाजतें रोइ न जाई।
शैख़ नज़ीर
सूफ़ी लेख
अलाउल की पद्मावती - वासुदेव शरण अग्रवाल
कोयल जैस फिरौं सब रूखा। पिउ पिउ करत जीभ मोर सूखा।।बनखँड बिरिख रहा नहिं कोई। कवन डर जेहि लागि न रोई।।
भारतीय साहित्य पत्रिका
सूफ़ी लेख
पदमावत के कुछ विशेष स्थल- श्री वासुदेवशरण
बंध नाहिं औ कंध न कोई। बाक न आव कहौं केहि रोई।ररि दूबरि भई टेक बिहूनी। थंभ नाहिं उठि सकै न थूनी।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
गूजरी सूफ़ी काव्य
जिकरी ब-शौक़ दिली न जिगरी
तुझ सा मीत न मिलिया कोई रेएक लड़ी उहर रोई रे