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शबद
।। भैरउ असटपदीआ महला 1 घरू 2 ।। -आतम महि रामु राम महि आतमु चीनसि गुर बीचारा ।
पउणु पाणी बैसंतरू रोगी रोगी धरति सभोगी ।।मात पिता माइआ देह सि रोगी रोगी कुटंब संजोगी ।।
गुरु नानक
कवित्त
नारनी को शीलवान घरनी को धनवान
रोगी बुरो तान बिन खग्ग खड्ग सार बिन,'हाफिज' अधिक बुरो मित्र को पयान है।।
हफ़ीजुल्लाह ख़ान
महाकाव्य
।। रसप्रबोध ।।
जेहि पिय अटक्यौ और सों अति रोगी की नारि।और दुसरी बात यह सुखसाध्या निरधारि।।241।।
रसलीन
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कवित्त
चांद से चकोरे टले मेघ से भी मोर टले
रोगी हूँ ते रोग टले, भोगी हूँ ते भोग टले,जोगी हू ते जोग टले कामी हूँ ते नार जो।।
शहरयार मिर्ज़ा
दोहरा
पुछि पुछि पवे न बिपता मूले
पुछि पुछि पवे न बिपता मूले, अते पुछि पुछि होन न रोगी ।लिख्या लेख करे सरगरदां, क्या जोगी क्या भोगी ।
हाशिम शाह
गीत
यहाँ न ‘मुमताज़’ चैन होगी जियेगा जब तक रहेगा रोगीशह-ए-मदीना दर पे जा पड़ तू बिपत में फँसा हुआ हे
मुमताज़ गंगोही
ग़ज़ल
पी दर्शन की ख़ातिर हम ने भगवन भेस बनाया थाजोगी बन कर निकले थे हम रोगी लेकर जान फिरे
तुफ़ैल हुश्यारपुरी
सूफ़ी लेख
अल-ग़ज़ाली की ‘कीमिया ए सआदत’ की तीसरी क़िस्त
दूसरे- ये लोग ऐसे मूर्ख है कि परलोक को ही नहीं मानते, और कहते हैं कि
सूफ़ीनामा आर्काइव
सूफ़ी लेख
अल-ग़ज़ाली की ‘कीमिया ए सआदत’ की दूसरी क़िस्त
यदि नहीं, यदि किसी मनुष्य के हृदय में भगवान् की पहचान करने की रुचि न हो