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निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
सूफ़ी कहानी
ज़बान ना जानने की वजह से अंगूर पर चार आदमियों का आपस में झगड़ा - दफ़्तर-ए-दोउम
चार आदमी चार मुल्कों के एक जगह जम्अ’ थे।किसी ने उन चारों को एक दिरम (चांदी
रूमी
सूफ़ी उद्धरण
लोग जब हमारे पास आते हैं, तो नर्मी की वजह से आते हैं। अगर एक दिन भी उन से प्यार की बात न करो, तो कोई न आए।
मख़्दूम ख़ादिम सफ़ी
सूफ़ी उद्धरण
रस्मी मुरीद, अगर नेक होगा तो उस वजह से जाना जाएगा और बुरा होगा तो पीर के तुफ़ैल बख़्शा जाएगा। ये दौलत भी कम नहीं है। बहरहाल! पीर ज़रूर होना चाहिए।
शैख़ हुसामुद्दीन मानिकपुरी
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सूफ़ी लेख
समाअ और क़व्वाली की वजह तसमीया
क़ौल और कलबाना अमीर ख़ुसरौ के ईजाद-कर्दा दो ऐसे राग हैं जो अक़्साम-ए-क़व्वाली में शुमार किए
अकमल हैदराबादी
ग़ज़ल
शहीद-ए-इ’श्क़-ए-मौला-ए-क़तील-ए-हुब्ब-ए-रहमानेजनाब-ए-ख़्वाजः क़ुतुबुद्दीं इमाम-ए-दीन-ओ-ईमाने
वाहिद बख़्श स्याल
सूफ़ी कहावत
रू-ए ज़ेबा मरहम-ए-दिलहा-ए-ख़स्ता अस्त-ओ-कलीद-ए-दरहा-ए-बस्ता
एक ख़ूबसूरत चेहरा दुखी दिलों के लिए मरहम की तरह होता है, और बंद दरवाजों के लिए कुंजी
वाचिक परंपरा
ना'त-ओ-मनक़बत
गुल-ए-बुस्तान-ए-मा'शूक़ी मह-ए-ताबान-ए-महबूबीनिज़ामुद्दीन सुल्तान-उल-मशाइख़ जान-ए-महबूबी
हसरत अजमेरी
सूफ़ी कहानी
हज़रत-ए-उ’मर के पास सफ़ीर-ए-क़ैसर का आना - दफ़्तर-ए-अव्वल
क़ैसर का एक सफ़ीर दूर-दराज़ बयाबानों को तय कर के हज़रत-ए-उ’मर से मिलने को मदीने पहुंचा।
रूमी
ना'त-ओ-मनक़बत
सुल्तान-ए-मन अमीन-ए-मन ज़ीनत-ए-इंतिज़ार-ए-मनआप की दीद-ए-सुकून-ए-दिल दरमाँ दिल-ए-अफ़गार-ए-मन
डॉ. शाह ख़ुसरौ हुसैनी
ना'त-ओ-मनक़बत
शैख़-ए-'आलम क़ुत्ब-ए-दौराँ हज़रत-ए-पीर-ए-मुजीबक़िब्ला-ए-दिल का'बा-ए-जाँ हज़रत-ए-पीर-ए-मुजीब