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बैत
हैराँ हूँ मैं उस शख़्स पे जिस ने ये न जाना
हैराँ हूँ मैं उस शख़्स पे जिस ने ये न जानाअव्वल भी है अफ़ज़ल भी मोहम्मद का घराना
मोहम्मद समी
ग़ज़ल
इस ज़माने में है हर शख़्स को दुनिया की तलाशबस ग़नीमत है जिसे कुछ भी हो उ'क़्बा की तलाश
शाह तुराब अली क़लंदर
सूफ़ी उद्धरण
जिस शख़्स का वतन में कोई महबूब न हो वो वतन से मोहब्बत नहीं कर सकता।
जिस शख़्स का वतन में कोई महबूब न हो वो वतन से मोहब्बत नहीं कर सकता।
वासिफ़ अली वासिफ़
सूफ़ी कहानी
एक शख़्स का नमाज़-ए-जमाअ’त के ना मिलने पर हसरत करना- दफ़्तर-ए-दोउम
एक शख़्स मस्जिद में दाख़िल हो रहा था। देखा कि लोग बाहर चले आ रहे हैं।
रूमी
सूफ़ी कहानी
एक शख़्स का ख़्वाब देखकर खज़ाने की उम्मीद पर मिस्र को जाना - दफ़्तर-ए-शशुम
एक शख़्स को विरासत में माल-ए-कसीर हाथ आया। वो सब खा गया और ख़ुद नंगा रह
रूमी
सूफ़ी उद्धरण
जो शख़्स सब की भलाई मांगता है, अल्लाह उसका भला करता है, जिन लोगों ने मेहमानों के लिए लंगर-ख़ाने खोल दिए हैं कभी मुहताज नहीं हुए
वासिफ़ अली वासिफ़
सूफ़ी कहानी
एक शख़्स का बे मेहनत हलाल रोज़ी तलब करना- दफ़्तर-ए-सेउम
एक शख़्स दाऊद अ’लैहिस-सलाम के ज़माने में रोज़ाना ये दुआ’ करता था कि ऐ ख़ुदा मुझे
रूमी
दकनी सूफ़ी काव्य
मसनवी दर फ़वायद बिस्मिल्ला
ग़रीब एक शख़्स था सहरा नशीनकिस रफ़्तार तकलीफ़ था मर्द दीन