आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "शब-हा-ए-कार"
अत्यधिक संबंधित परिणाम "शब-हा-ए-कार"
शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
शब्दकोश से सम्बंधित परिणाम
अन्य परिणाम "शब-हा-ए-कार"
सूफ़ी कहावत
चराग़-ए- के ऊ ख़ानः रौशन कुनद बरूख़त उफ़्ताद कार-ए-दुश्मन कुनद
वो चिराग जो घरों को रोशनी देता है, अगर वह किसी के कपड़ों पर गिरे, तो दुश्मन की तरह काम करेगा।
वाचिक परंपरा
पबेरा
बिरह बिबोग सहयौ नहीं जाई। हा हा मोहि गहै जिनि मांई।
बिरह बिबोग सहयौ नहीं जाई। हा हा मोहि गहै जिनि मांई।अब तौ प्राननि दीनौ डेरा। आवै अंबुकि जाइ पबेरा।।
वाजिद जी दादूपंथी
मल्फ़ूज़
उसी माह और उसी सन की 27 तारीख़ को फिर सआ’दत-ए-पा-बोसी नसीब हुई।शैख़ जमालुद्दीन मुतवक्किल, शम्स
बाबा फ़रीद
ना'त-ओ-मनक़बत
तुम्हारे ज़र्रे के परतव-ए-सितार-हा-ए-फ़लकतुम्हारे फ़े'ल की नाक़िस मिसल ज़िया-ए-फ़लक
अहमद रज़ा ख़ान
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
ब-रौ ब-कार-ए-ख़ुद ऐ वाइ'ज़ ईं चे फ़रियाद अस्तमरा फ़ितादः दिल अज़ कफ़ तुरा चे उफ़्ताद अस्त
हाफ़िज़
ग़ज़ल
शब-ए-फ़ुर्क़त में याद उस बे-ख़बर की बार बार आईभुलाना हम ने भी चाहा मगर बे-इख़्तियार आई