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सूफ़ी कहानी
सुल्तान महमूद का एक रात चोरों के साथ शरीक रहना -दफ़्तर-ए-शशुम
एक रात को सुल्तान महमूद भेस बदल कर निकला और चोरों की जमाअ’त के साथ हो
रूमी
ग़ज़ल
अलग ही रख शब फ़ुर्क़त के सन्नाटे से दिल अपनाशरीक-ए-ग़म न हो जाए कहीं ज़ालिम ये तन्हाई
नीयाज़ मकनपुरी
ग़ज़ल
नज़र वाले शरीक-ए-जल्वा-गाह-ए-तूर होते हैंकि हर महफ़िल के दुनिया में अलग दस्तूर होते हैं
नख़्शब जार्चवि
शे'र
ऐ’श-ओ-इश्रत वस्ल-ओ-राहत सब ख़ुशी में हैं शरीकबे-कसी में आह कोई पूछने वाला नहीं