आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "शरीक-ए-गिर्या-ए-शबनम"
अत्यधिक संबंधित परिणाम "शरीक-ए-गिर्या-ए-शबनम"
शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
शे'र
गिर्या-ए-फ़स्ल-ए-ख़िज़ाँ का वक़्त आ पहुँचा क़रीबऐ गुलो देखो ये बे-मौक़ा' हँसी अच्छी नहीं
मुज़्तर ख़ैराबादी
पृष्ठ के संबंधित परिणाम "शरीक-ए-गिर्या-ए-शबनम"
समस्त
शब्दकोश से सम्बंधित परिणाम
अन्य परिणाम "शरीक-ए-गिर्या-ए-शबनम"
ग़ज़ल
कैफ़ी जायसी
ग़ज़ल
शबनम तो बाग़ में है न यूँ चश्म-ए-तर कि हमग़ुंचः भी इस क़दर है न ख़ूनी जिगर कि हम
मीर मोहम्मद बेदार
ग़ज़ल
नज़र वाले शरीक-ए-जल्वा-गाह-ए-तूर होते हैंकि हर महफ़िल के दुनिया में अलग दस्तूर होते हैं