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सूफ़ी कहानी
देहाती का शहरी को तसन्नो' से दोस्त बनाना- दफ़्तर-ए-सेउम
अगले ज़माने में एक देहाती की किसी शहरी से शनासाई हो गई। जब देहाती शहर को
रूमी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
दीवानः शुद ज़ू इश्क़ हम नागह बर-आवर्द आतिशीशुद रख़्त-ए-शहरी सोख़त: ख़ाशाक-ए-ईं वीरानः हम
अमीर ख़ुसरौ
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ग़ज़ल
वज्द के आ'लम में हर ज़र्रे को रक़्साँ देखिएकिस ने छेड़ा साज़-ए-दिल पुर-नग़मा-ए-जाँ देखिए
हादी मछली शहरी
ग़ज़ल
अश्क आँखों में फ़ुग़ाँ होंटों पे हसरत दिल में हैइक नई सूरत से ज़ाहिर इ'श्क़ हर मंज़िल में है
हादी मछली शहरी
व्यंग्य
मुल्ला नसरुद्दीन- तीसरी दास्तान
ख़ोजा नसरुद्दीन ने कहाः "लेकिन आप सौर (वृष) की रास में बैठे सितारे अल-दबारां को भूल